बता दिया राज़ खोल के देखा
ऐसी मैं कोई किताब तो नही
दिल से सुनते तो सुनाई देती
कान खामोशियो की चीखें सुनते नही
युही रूठना युही मान जाना
यू मोहब्बत करना हम आता नहीं
आज इस पे गया कल उस पे
ये दिल है कोई निगाह नही
जख्मी होकर है कदरदान तेरे वार के
तेरी नज़रो ने कायल किया घायल नही
तुझसे आगे भी होगी दुनिया बेशक
जो संग तुम नही तो वहाँ हम भी नही
करके बेआबरू खुद ही मोहब्बत को
समझते मुझे की वफ़ा करना आता नही
तू ना सीखा सलीका-ए मोहब्बत मुझको
ये तुझे आता तो मैं बेवफा होता नही
और क्या के क्या कर सकते हो मेरे लिए
ये भी पूछोगे अगर मैं कुछ करा जताता नही
तुम भी रहे बेक़रार मोहब्बत को
हमने बस इज़हार किया इश्क़ कबूला तुमने ही
मज़ाक भी ना कर किसी और के होने का
मैं भी गया तो लोटके आना नही
कहते वो भूल जाओ हमे समझाये उन्हें
मोहब्बत में करते ऐसा मज़ाक नही
ना पूछो हमसे उनकी आलम-ए-बेवफ़ाई
वो मिले तो कम्भख्त नज़र भी चुराता नही
के तू खूब कर गलती विशाल
इससे अच्छा सुधरने का कोई रास्ता नही
गुरुवार, 29 जून 2017
बता दिया राज़ खोल के देखा
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