बुधवार, 9 नवंबर 2016

इंतज़ार


इंतज़ार मे तेरे, 
आज दिन इंतकाल का भि आ गया।
जानकर अन्जान था जिससे, 
वो दिन वक्त से पहले आ गया।

दर्द नही मौत का,
है कशक इस लाश मे।
अब भी तुम्हें बताने को, 
भनक नही जमाने को।

दिया  जो  दिलाशा  तुमने  जन्नत का ,
हमें बहलाने को
किया खुद को खुदा के हवाले,
वादा तुम्हारा निभाने को।

और अब आ गये चार काँधे, 
जहाँ मे हमारा हिस्सा दिखाने को।
बस चार अक्षको की जरूरत है तुम्हारे, 
जमाने मे किसी को अपना बताने को।















Intzar M Tere ,

Aaj Din Intkal Ka Bhi Aa Gaya,
Jankr Anjan Tha Jisese,
Wo Din Waqt Se Pahele Aa Gaya,

Dard Nhi Maut Ka,

H Kasaq Ise Laase M,
Abe Bhi Tumhe Batane Ko,
Bhanaq Nhi Jamane Ko,

Diya Jo Dilasa Milne Ka Janat M,

Hume Behlane Ko,
Kiya Khude Ko Kuda K Hawale,
Vada Tumhara Nibhane Ko,

Or Abe Aa Gaye Chaar Kaandhe,

Jha M Humara Hissa Dikhane Ko,
Bus Chaar Asq Ki Jarurt H Tumhare,
Jamane M Kisi Ko Apna Batane Ko,
  



इंतजार किसी का क्या करे,
प्यार किसी से क्या करे।
जिन्हें जनाजे पे मौत भी धोका दे गयी ,
वो ऐतबार किसी का क्या करे।







शमा शाम देख रही थी,
रंग चडी हमारी शायरी थी।
छलके जाम से इस्तकबाल को,
कतरे शराब के।
तेरे इंतजार मे यू गुजरी,
जो मेरी शाम आखरी थी।

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