शनिवार, 12 नवंबर 2016

अधूरा


कुछ अल्फाज अधूरे थे, 

कुछ लब्स ना कह पाये,
इस दिल के अरमा,
फिर ना बयां हो पाये।

था कसूर महफिल कि निगाहों का,
या  दस्तुर उनकी अदा-ओ का।
कि नये जो अरमा जहन मे आये ,
हम सब कह कर भी कुछ कह ना पाये। 

कोई रोको उन्हें,
अधूरे अल्फाज थे,अधूरे अरमा मेरे,
अब महफिल से ना हमें अधूरा करके जायें।

जानना हि है, अगर अरमानो को, 
तो मेरी आँखों मे झांके । 
गुनाह मेरी खामोशी है, 
इसकी सजा महफिल को ना देकर जाये।
















Kuch Alfaj Adure The, 

Kuch Labes Na Keh Paye,
Ise Dil K Arma,
Fir Na Bya Ho Paye.

Tha kasoor Mehfil Ki Nigaho Ka,

Ya Dastoor Unki Ada-o Ka,
Ki Naye Jo Arma Jahen M Aaye,
Hum Sab Keh Kr Bhi Kuch Keh Na Paye,

Koi Roko Unhe,

Adhure Alfaj The Adhure Arma Mere,
Abe Mehfil Se Na Hume Adhura Krke Jaye,

Janna Hi H, Agar Armano Ko,

To Meri Aankho M Jhake,
Gunhagar Meri Khamoshi H,
Iski Saja Mehfil Ko Na Dekr Jaye,







मैं रंग नही जो फीका पड जाऊ,  
ना वक्त जो हर पल बदल जाऊ,  
तेरा इश्क मेरी इबादत,  
तेरा नाम मेरा कलमा है, 
अब तु ही बता इन्हें भूलके, 
मै काफिर कैसे बन जाऊ,




Mai rang nhi jo fika pad jau,
 
na waqt jo hr pal badel jau, 
Tera ishq meri ibadat, 
Tera naam mera kalma h, 
Abe tu hi bata inhe bhulke, 
Mai kafir kaise ban jau,

   

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